आप लोगों ने सलीम की पिछली पोस्ट मे पढा कि किस प्रकार सलीम ने साहब सिंह के आँख पर पडा पर्दा हटाने का महान उपक्रम किया। अब साहब सिंह ने भी सोचा कि अगर उसने "ढंग से अध्ययन" न किया तो सलीम की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा, अतः उसने अध्ययन हेतु मार्गदर्शन मांगा, अब क्या था, सलीम ने देखा मौका मारा चौका, अपने ब्ळॉग का लिंक दे दिया। यहीं एक दुर्घटना हो गई, साहब सिंह ने उस ब्लॉग के अलावा और भी कुछ ब्लॉग (सुरेश चिपलुनकर और बी एन शर्मा के जैसे) ब्लॉग भी पढ लिए आखिर सलीम ने ही कहा था कि "ढंग से अध्ययन" की जरूरत है। अब क्या हुआ आगे पढ़ें:-
अगले दिन जब सलीम जब मिला साहब सिंह से तो साहब सिंह ने कहा, हमारी मान्यताओं पर तो अच्छी जानकारी प्राप्त हो गई, क्या अब हम तुम्हारी मान्यताओं पर बात करें? सलीम तो अतिआत्मविश्वास का मारा हुआ था, कहा क्यों नही (सोचा साहब सिंह क्या सवाल करेगा?)
साहब सिंह का पहला सवाल - हमे अल्लाह को क्यों मानना चाहिए? उसकी इबादत क्यों करनी चाहिए?
सलीम - अगर हम अल्लाह को नही मानेंगे तो बहुत बडा गुनाह होगा। अंत मे हम जहन्नुम मे डाल दिए जाएंगे।
साहब सिंह - अगर हम अल्लाह को नही मानेंगे तो वो हमे जहन्नुम मे डाळ देगा, ऐसा तो रघुराज प्रताप सिंह भी करता है, तो क्या अल्लाह भी ऐसा ही करेगा तो दोनो मे अंतर क्या?
सलीम - मौलवी साहब ने यह तो मुझे बताया ही नही।
साहब सिंह - अच्छा अगर हम अल्लाह की इबादत करेंगे तो अल्लाह हमे जहन्नुम मे नही डालेगा?
सलीम - नही।
साहब सिंह - तो वो क्या करेगा?
सलीम - जन्न्त बख्शेगा।
साहब सिंह - वहां क्या होगा?
सलीम - वहां खूब आब-ए-हयात (शराब) और ७२ हूरें मिलेंगी।
साहब सिंह - यह तो दाउद इब्राहिम भी इंतज़ाम कर देगा, शराब और औरतें, तो दोनो मे अंतर क्या?
सलीम - पर अल्लाह हूरें देगा।
साहब सिंह - हूरों के साथ तुम कुछ अलग करने वाले हो क्या?
सलीम - हां यार, सही कहते हो। इन सब के बारे मे तो मौलवी साहब ने यह तो मुझे बताया ही नही।
सलीम - मगर अल्लाह अकेले यह कर सकता है, तुम उसकी तुलना दो लोगो से कर रहे हो।
साहब सिंह - ये दोनो ही इस तरह के हर काम मे सक्षम हैं अर्थात दोनो ही दोनो काम कर सकते हैं, मानते हो या नही।
सलीम - सही है।
साहब सिंह - तो तुम जो एकेश्वरवाद की बात करते हो, उसके बराबर यहां दो लोग और खडे हैं, क्या यह बहुदेववाद को सही सिद्ध नही करते?
सलीम - मालूम नही, मेरे मौलवी साहब तो यह सब बताते नहीं
साहब सिंह - अल्लाह को ही क्यों मानें?
सलीम - अल्लाह ही हमे इस धरती पर भेजता है। वही हमे जीवन देता है, हम उसकी मर्जी के खिलाफ कुछ नही कर सकते।
साहब सिंह - अगर अल्लाह हमे जीवन देता है तो हमारी ज़ान कौन लेता है? वो हमारा ज़ान लेने वाला शैतान हुआ न?
साहब सिंह - और अगर हम अल्लाह की मर्जी के खिलाफ कुछ नही कर सकते, जो कुछ भी होता है वो सब उसकी मर्जी से होता है तो गलत तो कुछ भी नही होता होगा, या वो ज़ान बूझ कर गलत करवाता है हमसे और फिर हमे ही जहन्नुम मे फेंक देता है?
सलीम - ऐसे नही बोलते, कुफ्र होता है।
साहब सिंह - तो क्या इस्लाम मे चर्चा, तर्क और बहस पर पाबंदी है?
सलीम - नहीं। पर अल्लाह पर सवाल नही उठाने चाहिए?
साहब सिंह - जब तक हम सवाल नहीं करेंगे, तब तक यह कैसे मालूम पडेगा कि सामने अल्लाह है या उसके भेस मे शैतान?
सलीम - मौलवी साहब ने यह तो बताया ही नहीं।
सलीम - साहब सिंह तुमको इतना ज्ञान कहां से आया?
साहब सिंह - मैने तुम्हारे कहे अनुसार "ढंग से अध्ययन" किया, तो मुझे मालूम पडा।
सलीम - कहां अध्ययन किया यह सब?
साहब सिंह - ब्लॉग पर ही, सुरेश चिपलूनकर और बी एन शर्मा को पढो। फिरदौस और उम्मी को पढो।
सलीम - अरे यार तुमने तो बहुत लोगो को पढ लिया। सच मे तुमने मेरे दिमाग के सारे तार झनझना दिए, तुम मेरे सही मायने मे सच्चे दोस्त हो, अब तक मैं कितना गलत सोचता था, तुमने मेरे सोच को सही दिशा दे दी। अब तक मुझे मेरे मौलवी जो बताते गये मैं वही रटता गया, सच्चे मायने मे ढंग से अध्ययन तो तुमने किया है।
निवेदन - भाईयों यही सारे तर्क किसी भी धर्म के लिए दिए जा सकते हैं अतः आप सकारात्मक सोचें नकारात्मकता से सलीम के जैसे औंधे मुँह गिरे नज़र आएंगें।