ऐसा सभी मानते हैं कि आप जिस प्रकार का व्यवहार दूसरों के साथ करेंगे दूसरे भी वैसा ही आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे। यह प्राकृतिक नियम है। इसका अनुपम उदाहरण अभी पाकिस्तान को प्राप्त हो गया। पाकिस्तान मे इस्लाम के अतिरिक्त अन्य धर्मावलिम्बियों के साथ सदैव ही उपेक्षापूर्ण (अपितु शत्रुतापूर्ण) व्यवहार होता आया है। कभी हिन्दु अथवा सिख अगवा कर लिए जाते हैं "ज़जिया" के लिए, तो कभी उनकी बेटियों को उठा लेते हैं और जबरन धर्म परिवर्तन कर किसी के पल्ले बांध देते हैं। और जब इन सबसे मन न भरे तो ईशनिन्दा का आरोप लगा किसी को भी जेल भिजवा देते हैं।
पाकिस्तान मे अनेक मंदिर एवं गुरुद्वारे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों मे बदल गए हैं, तो कई अपनी पहचान खो कर कूडाघर अथवा अन्य सामुदायिक उपयोग के स्थल बन चुके हैं। पाकिस्तान मे अल्पसंख्यकों की धार्मिक मान्यता को कितना महत्वपूर्ण मानते हैं इस बात से ही मालूम पडता है। जब ये ऐसी हरकतें करते हैं तो इन्हे अपना कृत्य पौरुष का प्रदर्शन लगता है, इन्हे लगता है कि इस प्रकार ये दुनिया को अपने सामर्थ्य का परिचय दे रहे हैं।
ऐसे मे जब विरोधियों ने भी इनको इनकी भाषा मे जवाब देना प्रारम्भ किया तो इनको मिर्ची लग गई। अरे भाई जब खुद नही झेल पाते हो दूसरों की ऐसी हरकतें तो उंगली क्यों करते हो? उंगली करोगे तो कोइ न कोइ तो उंगली मरोडेगा ही।
शठे शाठ्यम समाचरेत
ReplyDeleteइन हरामियों को सबक जो आप सिखा रहे है मै भी साथ में हूँ
mahatmaji jab tak agyatvas me hain.......aap bhi thora doosre aham kam kar len.......
ReplyDelete@suryabhanji.....anuj...hum sab is 'blogwood' ke
rahvasi ek hain so ap-shabd se apna garima na kam
karen........
isi munch pe pachua-pawan ne unhe 'nazarandaz' kar dene ki baat kahi thi.....jo sahi thi.....
sadar....
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ReplyDeleteमुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस विज्ञान के युग में एक वैज्ञानिक सोच का व्यक्ति वेजिटेरियन है .. सलीम खान
ReplyDeletehttp://swachchhsandesh.blogspot.com/2011/04/non-veg-therealscholar.html
इनके अनुसार पढ़ा लिखा व्यक्ति अगर मांस नहीं खाता है तो वो या तो इंसान नहीं है या पढ़ा लिखा नहीं है ...लाजवाब सोच .
हिमांशु जी,
ReplyDeleteउसकी वैज्ञानिक सोच का मतलब है जंगलीपन और क्रूरता की पढाई।
कोई आश्चर्य नहीं कल को ये कहें विज्ञान के युग में कच्चा चीर-फाड के न खाया तो वैज्ञानिक सोच नहीं है।