धूर्तों की सबसे बड़ी पहचान यह होती है कि वो छोटी बातों की तुलना बड़ी बातों से कर एक समान साबित करने की कोशिश करते हैं और इस भांति अपने को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयत्न, अब चुंकि दूसरे पक्ष की भी कहीं गलती हो सकती है, परन्तु वह पक्ष छोटी गलती होने पर भी अपराध भाव से भर जाए यह इनका प्रयत्न रहता है, और इसी मे इनकी विजय है, क्योंकि अपराध भाव से भरा व्यक्ति अपना मुख नही खोलेगा, और ये ज़नाब अपनी कारगुजारी करते रहेंगें।
२६ नवंबर २००८ की घटना के समय हमारे TV चैनेलों का काम निश्चित रूप से गलत था और ताज़ के live प्रसारण से आतंकियों को लाभ मिला, पर TV कंपनिया इसको जानकर नही अनजाने मे कर गई और हमारे गुरु घंटाल जी को मौका मिल गया इन दोनो को एक बराबर खड़ा करने का, अब भला ये चूकने वाले थे भला?
अंत मे घोटाले को भी इन्होने युद्ध की श्रेणी मे रख दिया, और यह चाहते हैं कि इन सबको कसाब से अधिक ही सज़ा मिले (अर्थात प्रकारांत से कसाब को कम सज़ा दी जाए)
टिप्पणी मे अपनी आदत के अनुसार बात रख दी कि कानून व्यवस्था मे त्वरित निपटारे का प्रावधान नही जो कि इरान मे है, और हम उसे इसलिए नही अपना रहे क्योंकि इरान इस्लामी राष्ट्र है, अब इन अक्ल के अंधों को कौन समझाए कि ऐसी व्यवस्थाएं विश्व के अनेक देशों मे हैं जिनमे से कई गैर मुस्लिम भी हैं, जैसे चीन पर जिस प्रकार ये महोदय हमेशा कहते आए हैं कि "क्या एक अच्छी बात केवल इसलिए न सीखी जाए कि वह मुस्लिम देश का दस्तूर है ?" उसी तर्ज़ पर क्या एक अच्छी बात के लिए चीन को सिर्फ इसलिए प्रशंसा न दी जाये क्योंकि वह एक गैर मुस्लिम राष्ट्र है?
जय गुरु घंटाल
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/11/kasab-and-indians.html
dhote rahiye....kya pata kabhi.....chamak aa hi jai......yse bharosa kam hi hai.......
ReplyDeletesadar.
Koi bharosha nhi h khoon hi yesha h
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