शर्मा जी ने अपने पोस्ट मे लिखा था कि क्यों मुस्लिम शयरों से नफ़रत करते हैं, ये ज़नाब कैसे अलग होते? इनका इल्ज़ाम तो देखिए - "अक्सर शायर लोगों की ख़ुशी ध्यान मेँ रखकर अपना कलाम पेश करता है और उसे पता होता है कि अगर सच कह दिया तो बड़ा वर्ग नाराज़ हो जाएगा" अब हमारे गुरु घंटाल को कौन समझाए कि पराधीनता काल मे राष्ट्र साधना मे इन शयरों का बड़ा योगदान रहा है, अब आप ही बताईए कि 'रंग दे बसंती चोला' लिखने वाले ने किस से डर कर अपने बोल कमज़ोर किए, या वन्दे मातरम के बोल क्या हमारे लड़ाई का गुरु मंत्र नही था, पर चश्मा............... जी हां अगर चश्मा रंगीन हो तो सब एक ही रंग का दीखता है।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/11/one-who-is-in-search-of-truth-must-dive.html
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