Sunday, January 30, 2011

इस्लाम परिवार, तथा पुरूषों, महिलाओं और बच्चों के योगदान के बारे में क्या दृष्टि कोण रखता है ?

हमारे गुरु ने दुनिया को सिर्फ और सिर्फ अरब के चश्मे से देखा है, इसीलिए तो सौतेली माँ से विवाह उसे सामान्य लगता है कहता है कि इस्लाम पूर्व यह ज़ायज था - होगा पर कहां? वहीं अरबी जंगलियों मे, यहां तो सौतेली मां ही क्यों, पिता के उम्र की सभी महिलाएं मां समान मानी जाती थी। बेटी लक्ष्मी का रूप थी, और सदैव पूजनीय थी।

यह तो मलेच्छ मुस्लिम राक्षसों के द्वारा महिलाओं को उठाने की घटनाओं के चलते स्त्रियों की रक्षा की बात सोचनी पडी अन्यथा भरत भूमि पर इसका कोइ खतरा कभी नही रहा।
कहतें हैं कि कि गैर मुस्लिमों के यहाँ परिवार टूटा हुआ है, कोइ जरा पूछे कि शाहबानो को किस श्रेणी मे रखोगे? अगर वो मुस्लिम है तो उसका परिवार कहां है? और अगर वो टूटे परिवार का हिस्सा है तो उसका धर्म क्या है?

गौर फरमाएं "इस्लाम ने परिवार के सतीत्व, उस की पवित्रता, पाकदामनी, और उस के नसब (वंशावली) की रक्षा की है" कैसा नसब? आज इससे विवाह, कल तलाक, परसों दूसरे के साथ गुलछर्रे, बढिया नसब है।

(http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/03/blog-post_26.html)

1 comment:

  1. हे नबी !हमने तुम्हारे लिए तुम्हारी वे पत्नियां हलाल (lawfull ) कर दी हैं ,जिनके महर तुमने दे दिए हैं .और तुम्हारी "लौंडियाँ "booty (लूट में पकड़ी गयी औरतें )जो अल्लाह ने तुम्हें गनीमत के माल में दी गयी हैं ,और तुम्हारे चचा की बेटियाँ ,तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ ,और तुम्हारे मामूँ की बेटियाँ ,और तुम्हारी खालाओं की बेटियाँ ,और जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की है ,उनकी बेटियाँ ,और वह ईमान वाली औरतें जो अपने आपको तुम्हारे हवाले कर दें

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