Monday, February 28, 2011

Prejudice मेरे बारे में बदगुमानियों के पीछे एक बड़ी वजह आपकी ज़हनियत भी है। क्या आप इसे स्वीकार करते हैं ?

हमारे गुरु घंटाल जी का एक प्रिय शगल है किसी एक बंदे को ले लो, उस पर अपनी superiority का रंग जमाने की कोशिश करना।, इस बार नम्बर था अपर्णा बहन का। लिखते हैं कि "सबमें मैंने यही लिखा है कि ईश्वर एक है और उसका धर्म भी एक ही है।" पर चुपके से काम की बात गोल कर गए, यह नही लिखा कि वो ईश्वर वही है जिसे मैं मानता हूं, शेष सब गलत है (नही तो और क्या कारण है बार बार वेदों एवं अन्य धर्म ग्रन्थ, दूसरे धर्म के भी, को प्रक्षिप्त कहना?)

अपर्णा जी, आप को जो बात समझ मे आ गई मैं उसी को यहां सबके सामने रख रहा हूँ, मेरा मकसद इस ब्लॉग को प्रारम्भ करने का सिर्फ यही है। जो काम आपके भैया ने प्रारम्भ की है (भेड़िया को expose करने का) मैं उसको ही पूरा कर रहा हूँ, वैसे ्तो लोग इस भेड़ के खाल मे छिपे भेडिए को पहचानने लगे हैं पर मैने सोचा कि इस कार्य को तनिक व्यवस्थित ढंग से कर दूं।

और हां आपके गजल के बोल इन्होने अपने टिप्पणी बाक्स पर लगाया पर कहीं कोइ credit किधर भी दिया क्या? चोर मनोवृत्ति के व्यक्ति से और क्या अपेक्षा कर सकते हैं हम?

http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/prejudice.html

4 comments:

  1. @ भाई समीक्षा सिंह जी ! आप लोग मेरी रचनाओं को ठीक ढंग से नहीं पढ़ते इसीलिए आप मुझसे बदगुमान और परेशान रहते हैं । अपर्णा पलाश बहन का कोई भी शेर मैंने अपने ब्लाग 'अहसास की परतें' के कमेँट बॉक्स के साथ नहीं लगाया है , तब आप मुझे चोरी का झूठा इल्ज़ाम क्यों दे रहे हैं ?
    जो इस जगत का रचनाकार है वही एक ईश्वर है मैं उसी को मानता हूँ और आप भी उसी को मानते होंगे ।
    अगर आपकी नज़र में आपके धर्मग्रंथ प्रक्षिप्त नहीं हैं तो आप उनका पालन कीजिए ।
    आप खुद कहते हैं कि हिंदू धर्म के ग्रंथों से आपकी आस्था हिली चुकी है ।

    1. क्या आप आज के युग में विधवा को सती कर सकते हैं ?
    2. क्या आप आज की व्यस्त जिंदगी में तीन टाइम यज्ञ कर सकते हैं ?
    3. क्या आप आज अपने बच्चों को वैदिक गुरूकुल में पढ़ाते हैं ?
    4. क्या आपके पिताजी 50 वर्ष पूरे करके वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते हुए जंगल में जा चुके हैं ?
    5. और अगर मुसलमानों की तरह वह जंगल नहीं जाते तो क्या अब आप उनसे अपने धर्मग्रंथों के पालन के लिए कहेंगे ?

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  2. आपने कुछ लोगो के केर्त्य को धर्म समझ लिया है ,

    धर्म को समझना आप के बस के बाहर है ,

    पहले ये बताओ

    -सेक्स के खतना कहँ तक सही है

    -सेक्स की आग बुझाने के भाई बहनों में सेक्स कहँ तक सही है

    -औरत को बच्चे पैदा करने की मशीन बनना कहँ तक सही है

    -धर्म के नाम पर दुनिया भर में आतंक फैलाना कहँ तक सही है

    -मासूम जानवरों की हत्या अपने स्वाद के लिए कहँ तक सही है

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  3. जमाल मैने जो comment लगाया है वो तुम्हारे ब्लॉग पर अपर्णा बहन के एक comment पर आधारित है। जिस ब्लॉग के जवाब मे यह पोस्ट है उस पर जाओ (लिंक दिया है ऊपर) वहां अपर्णा बहन की टिप्पणी देखो ३०वां comment (अपर्णा बहन का तीसरा) पढो लिखा है "जमाल साहब दुनिया तो जनम लेते ही पीछे पड़ जाती है मेरी गजल के शब्द अपने टिप्पणी बॉक्स पर लगाकर मेरा मान बढाया शुक्रिया" इसका मतलब मैं क्या समझूं? वैसे मेरा ब्लॉग जगत मे सक्रिय होने का पूरा श्रेय बहन फिरदौस एवं भाई सौरभ को जाता है, जिस समय फिरदौस बहन के ऊपर सभी धर्मांध टूट पडे थे उसी समय से मैं ब्लॉग पढ रहा हूं अतः अगर मैं अपर्णा बहन की बात पर विश्वास कर रहा हूं तो उसका कारण उन पर मेरा विश्वास नही है (उनसे तो कभी बात भी नही हुई) पर हां तुमको मैं अच्छे से जान गया उस समय मे, इसीलिए मैने ऐसा लिखा।

    मेरी आस्था हिन्दु धर्म ग्रंथों से नही उसकी व्याख्या से उठ चुकी है, मैं वो कोइ भी व्याख्या नही मान सकता जो मानवता के विरुद्ध जाती हो, और ऐसा अगर हिन्दु धर्म ग्रन्थों के साथ है तो कुरान के साथ उससे ज्यादा है।

    विधवा का सती होना अनिवार्य नही है, अन्यथा पाण्डवों को माता कुन्ती का दुलार भरा पालन पोषण नही मिलता।
    तीन समय यज्ञ किसी भी समय मे सम्पूर्ण जन सामान्य नही करते, ऐसा मूलतः ऋषि आश्रम मे ही होता था, आज भी शांतिकुंज हरिद्वार मे होता है।
    मेरे बच्चे नही हैं क्योंकि मेरा विवाह नही हुआ है।
    वानप्रस्थ भी अनिवार्य नही है/था अन्यथा भीष्म लडाई मे होते ही नही
    इसाइ भी जंगल नही जाते, क्या तुम अब बाईबिल का पालन करोगे?

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